ये तेरी नहीं अमानत, .. इसे तू दान मत देना
इस प्यार में ऐ दोस्त .... तुम जान मत देना
इस प्यार में ऐ दोस्त .... तुम जान मत देना
मुश्किलों ने सिखाया है ये फलसफ़ा जिंदगी का
कोई सवाल अब तुम मुझे ... आसान मत देना
मेरा अपनों से मुझे ........... अलहदा कर दे
मेरे मालिक मुझे कोई ऐसा गुमान मत देना
नज़र-अंदाज़ ...... तो कभी सर पर बिठा लेगी
दुनिया की इन हरक़त पर तुम ध्यान मत देना
सवाल जिंदगी का यूं तो मुश्किल है हल करना
पर ऐसा न हो कि ... तुम इम्तिहान मत देना
यूं तो फासलों ने बख्शी है ...... ये नजदीकियां
पर दुआ है कि दूरी अब .. दरमियान मत देना
लोग निकाल लेंगे ......... मायने अलग अलग
बेहतर है 'अमित' .. कि कोई बयान मत देना
बेहतर है 'अमित' .. कि कोई बयान मत देना
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ye teri nahi amaanat ise tu daan mat denaa
is pyaar me ae 'dost' tum jaan mat denaa
mushkilo ne sikhaaya hai ye fasafaa zindagi ka
koi sawaal ab tum mujhe aasaan mat denaa
mere apno se mujhe alhada kar de
mere maalik mujhe koi aisa gumaan mat denaa
nazar andaaz to kabhi sar par bithaa legi duniya
ye guzaarish hai kit um ispar dhyaan mat denaa
sawaal zindagi kaa yu to mushkil hai hal karna
par aisa na ho ki ....... tum imtihaan mat dena
yu to faasalon ne bakhsi hai .... nazdikiyaan
par dua hai ki doori ab darmiyaan mat denaa
behtar hai 'amit' ki koi bayaan mat dena
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आपकी ग़ज़ल हमेशा की तरह बहुत सुन्दर है .........उसको ध्यान में रखते हुए मैंने भी कुछ लिखा है......उम्मीद है आपको पसंद आएगा ...........
जवाब देंहटाएंवाकिफ हो की जम जाती है काई ठहरे हुए पानी में
इसलिए बातों का सिलसिला यूँ ही बरकरार रखना
राम की तरह ,समाज के कहने पर छोडोगे नहीं मुझे
किसी भी हाल में याद तुम अपना ये करार रखना
आंच आने लगे अगर कभी जो तुम्हारे उसूलों पे
तो झुकना नहीं कभी ,लबों पे इनकार रखना
कहीं भी रहूँ मैं,कुछ भी करू,तुम्हें मिलूँ न मिलूँ मैं
दिल से तुमसे बंधी रहूंगी बस इतना ऐतबार रखना
पहली मुलाकातों के बाद की वो सिहरन याद है तुम्हें
वक्त कितना ही गुजार जाए मुझे वैसा ही बेक़रार रखना
अलावा खुदा के किसी से कभी ना मांगना पड़े ,मुझे
बस यही एक आरज़ू है की मुझे इतना खुद्दार रखना
वक्त की आँधियों के थपेड़े जब कभी डगमगाएं मुझें
तब तुम अपने आगोश में एक बसन्ती बयार रखना
यूँ तो गलत राहों पे चल कर तरक्की का चलन है
बदले ज़माना पर तुम ज़मीर के पास अयार रखना
रिश्तों में कड़वाहटें कितनी भी क्यूँ न बढ़ जाएँ
तुम अपनी अना की हमेशा, गिरी हर दीवार रखना ........
अमित भाई आपका अंदाज़-ए-बयां सच में बहुत ही सुन्दर और लीक से हट कर रहता है हमेशा...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब... आपकी नज़र मेरी एक तुकबंदी...
शाख से फूल, फूल से खुशबु कभी जुदा न हो,
आबाद शहर-ए-दिल मैं अब कोई दूसरा न हो,
खो गए अब तो तेरी याद में इस तरह से हम,
जैसे के हमको खुद से ही कोई वास्ता न हो...